आपको जानकार हैरानी होगी कि भारतीय रेलवे प्रति वर्ष गुटखे की पीक को साफ़ करने के लिए 1200 करोड़ रूपए खर्च करती है यानि कि 100 करोड़ रूपए प्रति माह और रोजाना लगभग 3 करोड़ रूपए से भी अधिक।
गुटखे की पीक को साफ़ करने के लिए लाखो लीटर पानी का इस्तेमाल किया जाता है जोकि भारतीय रेलवे और हमारे लिए एक नुकसान का काम है।
कहते है कि बूँद बूँद से सागर भरता है लेकिन यहां पर पीक पीक से भारतीय रेलवे को 1200 करोड़ रूपए की चपत लगती है. सबसे बड़ी बात यह है कि ये पैसे सरकार अपनी जेब से तो खर्च करती नहीं है ये भी आपके और हमारे जैसे टैक्स पेयर्स की जेब से ही जाता है।
लेकिन अब भारतीय रेलवे इस समस्या से निजात पाने के लिए एक नया तरीका लेकर आई है. दरअसल भारतीय रेलवे ने एक स्टार्टअप Ezyspit के साथ मिलकर इस समस्या का हल निकलने की कोशिश की है।
कंपनी ने बायोडिग्रेडेबल पाउच बनाया है जिसमे गुटखा थूकने वाले गुटखा थूक सकते हैं. इस पाउच को 15 से 20 बार इस्तेमाल किया जा सकता है। जिसके बाद यह थूक सॉलिड फॉर्म में बदल जाता है. अगर आप इस थूकदान या पाउच को मिट्टी में दाल देते हैं तो यह मिट्टी में मिल जायेगा। मतलब कि यह पर्यायवरण के लिए भी सुरक्षित है।
अब देखने वाली बात यह है कि क्या यह प्रयोग कामयाब हो पायेगा या नहीं ? हाँ अगर ये कामयाब हुआ तो रेलवे के लिए तो फायदे का सौदा होगा ही, स्वच्छ भारत मिशन की दिशा मे भी हम एक कदम आगे बढ़ पाएंगे । यहाँ पर जरूरत है की इसका योजना के लिए लोगों को जागरूक किया जाए। फिलहाल रेलवे ने लगभग 50 स्टेशन पर वेंडिंग मशीन के द्वारा इन पाउच को बेचने की व्यवस्था की है, जो की 5-10 रुपये मे उपलब्ध हैं ।